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अ॒यं योनि॑श्चकृ॒मा यं व॒यं ते॑ जा॒येव॒ पत्य॑ उश॒ती सु॒वासाः॑। अ॒र्वा॒ची॒नः परि॑वीतो॒ नि षी॑दे॒मा उ॑ ते स्वपाक प्रती॒चीः ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ yoniś cakṛmā yaṁ vayaṁ te jāyeva patya uśatī suvāsāḥ | arvācīnaḥ parivīto ni ṣīdemā u te svapāka pratīcīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒यम्। योनिः॑। च॒कृ॒म। यम्। व॒यम्। ते॒। जा॒याऽइ॑व। पत्ये॑। उ॒श॒ती। सु॒ऽवासाः॑। अ॒र्वा॒ची॒नः। परि॑ऽवीतः। नि। सी॒द॒। इ॒माः। ऊ॒म् इति॑। ते॒। सु॒ऽअ॒पा॒क॒। प्र॒ती॒चीः॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:3» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:20» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (वयम्) हम लोग (ते) आपके (यम्) जिस गृह को (चकृम) बनावें सो (अयम्) यह (योनिः) गृह (पत्ये) स्वामी के लिये (उशती) कामना करती हुई (सुवासाः) सुन्दर वस्त्रों से शोभित (जायेव) मन की प्यारी स्त्री के सदृश (अर्वाचीनः) इस वर्त्तमानकाल में हुआ (परिवीतः) सब प्रकार व्याप्त उत्तम गुण जिसमें ऐसा हो, उसमें आप (नि, सीद) निवास करो और (स्वपाक) हे उत्तम प्रकार परिपक्व ज्ञानवाले ! (प्रतीचीः) प्रतीति को प्राप्त होती हुई (इमाः) यह वर्त्तमान प्रजा (उ) और (ते) आपके भक्त हों ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। राजा को चाहिये कि ऐसा गृह बनावे कि जो पतिव्रता सुन्दरी मन की प्यारी स्त्री के सदृश सब ऋतुओं में सुख देवे और वहाँ स्थित हुआ ऐसे कर्म करे कि जिन कर्मों से अपनी प्रजा अनुरक्त होवें ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! वयं ते यं चकृम सोऽयं योनिः पत्य उशती सुवासा जायेवार्वाचीनः परिवीतोऽस्तु, तत्र त्वं निषीद। हे स्वपाक ! प्रतीचीरिमा उ ते भक्ता भवन्तु ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अयम्) (योनिः) गृहम् (चकृम) कुर्य्याम। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यम्) प्रासादम् (वयम्) (ते) तव (जायेव) हृद्या स्त्रीव (पत्ये) स्वामिने (उशती) कामयमाना (सुवासाः) शोभनवस्त्रालङ्कृता (अर्वाचीनः) इदानीन्तनः (परिवीतः) सर्वतो व्याप्तशुभगुणः (नि) (सीद) निवस (इमाः) वर्त्तमानाः प्रजाः (उ) (ते) तव (स्वपाक) सुष्ठ्वपरिपक्वज्ञान (प्रतीचीः) प्रतीतमञ्चन्त्यः ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। राज्ञेदृशं गृहं निर्मातव्यं यत्पतिव्रता सुन्दरी हृद्या जायावत्सर्वेष्वृतुषु सुखं दद्यात्। तत्राऽऽसीन ईदृशानि कर्माणि कुर्य्या यैस्स्वप्रजा अनुरक्तास्स्युः ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी पतिव्रता प्रिय पत्नी सर्व ऋतूमध्ये सुख देते तसे राजाने घर बांधावे व ज्या कर्माने प्रजा संतुष्ट होईल असे कर्म करावे. ॥ २ ॥